फिर उसी दर्द को मैंने सीने से आँखों पे बुला लिया
फिर उन्ही आंसुओं को आखों में सजा लिया,
पर कौन से रस्ते से उन्हें इन पन्नो पे गिराऊं
तू ही बता ऐ वक़्त
मैं अपने दर्द को फिर से अफ्सानो में कैसे दिखाऊँ
Tuesday, March 9, 2010
Tuesday, February 16, 2010
चाह नहीं...
चाह नहीं मैं एक मेनेजर की टेबल से बंध जाऊं
चाह नहीं मैं दफ्तर में बस फाइल के नीचे दब जाऊं
मुझे pick कर लेना कंपनी वालों उस location पे देना तुम फ़ेंक
ऐश मौज हो और हंसी ठहाके
लड़कियां जिस पथ जाये अनेक....
चाह नहीं मैं दफ्तर में बस फाइल के नीचे दब जाऊं
मुझे pick कर लेना कंपनी वालों उस location पे देना तुम फ़ेंक
ऐश मौज हो और हंसी ठहाके
लड़कियां जिस पथ जाये अनेक....
Subscribe to:
Comments (Atom)