Friday, October 1, 1999

मेरी बहन

दालान में आती धीमी रौशनी के साथ के साथ
दीवारे से लगी खड़ी
वो मेरी बहन है

घर के कामों से उबी
बाहर दुनिया के रंगत ताकती
खुद को चौखट के भीतर सम्हालती
वो मेरी बहन है |

सीमाओं से बंधी
कल्पनाओं को बांधे
सिर्फ, दुनिया को देखती
इसके कामों को परखती
वो, मेरी बहन है |

सुबह के धुप का आसरा लेती,
chaadar लपेटे
चुपचाप, गुमसुम, शांत खड़ी
वो मेरी बहन है

मैं जाऊं, उसे टोकूँ
कहूँ चलो बाहर
देखो कितना कुछ है यहाँ
कितनी मस्ती है, कितना धुप है
क्यूँ उस धीमी रौशनी में हो
निकलो- उस अँधेरे से,
उस बंधन से
बांधो - नयी कल्पनाओं के मंजर
बंद चारदीवारी के बाहर पांव तो रखो
इन सडे रीति रिवाजों को छोडो
तलाशो खुद को
तलाशो खुद के वजूद को
तलाशो अपनी दुनिया को...
क्योंकि तू मेरी बहन है |

सुजीत कुमार (१९९९, अक्टूबर ) रूड़की

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