Monday, January 20, 2014

तेरे मुस्कराहट की चाहत में

Tere chechre ko murjhaya dekh ke aaya jab mujhe thodi dayaa..
maine socha tumhe de doon jaraa sa muskuraane ka tohfaa..

apne aap ka ghamzadaa kar loon.. aur suna dun tumhe uskee kahaanee jaraa, suna tha doosre ke gham me bade khush hote ho...



  

Tuesday, October 29, 2013

आँखों में आंसूं

तुम केहते हो  मेरे आँखों में आंसूं  आ जाते हैं आजकल
हर वक़्त
हर  लफ्ज़ पे
तुम्हे नहीं पता मैं आंसुओं में डूबा रहा हूँ अब तक कई सालों से
उनके सूखे परत पे बैठा आसरा देख रहा हूँ अब तो। के सुबह होगॆ।

तुम कहते हो
अकेले हैं हमने तो उम्र गुज़ार दी  है अकेले रहते रहते 

Tuesday, March 9, 2010

दिल का दर्द

फिर उसी दर्द को मैंने सीने से आँखों पे बुला लिया
फिर उन्ही आंसुओं को आखों में सजा लिया,
पर कौन से रस्ते से उन्हें इन पन्नो पे गिराऊं
तू ही बता ऐ वक़्त
मैं अपने दर्द को फिर से अफ्सानो में कैसे दिखाऊँ

Tuesday, February 16, 2010

चाह नहीं...

चाह नहीं मैं एक मेनेजर की टेबल से बंध जाऊं
चाह नहीं मैं दफ्तर में बस फाइल के नीचे दब जाऊं
मुझे pick कर लेना कंपनी वालों उस location पे देना तुम फ़ेंक
ऐश मौज हो और हंसी ठहाके
लड़कियां जिस पथ जाये अने
क....

Wednesday, October 28, 2009

वो कवि है

वो कवि है .. गाता ही जाएगा ..
तुम सुनो या अनसुना कर दो..
दिल की बात वो सुनाता ही जायेगा ..

अफसाने हैं उसके अन्दर
तेरे मन की उसके मन की सबके मन की
वो सबको पढता जायेगा..
सबके दिल की बात वो सुनाता जायेगा
तुम सुनो या अनसुना कर दो
दिल की बात वो सुनाता ही जायेगा

तुम रोते हो फिर हंसते हो
पल पल में खुद को जीत हो
अपने अन्दर को कब पढ़ पाते हो
राहें जैसी दिख जाती हैं
चल देते हो
मुड़ जाते हो
थक जाते हो सो लेते हो ...
दिन को अपना कभी कह पाते हो
रात के अँधेरे में सब भूल जाते हो
क्षणभंगुर जीवन के तार तुम कब जोड़ पाते हो

वो कवि है ..
तेरी वेदना का हर तार उसे मालुम है तेरी ख़ुशी से जुड़ा है कहीं न कहीं
वो तुम्हारी जिंदगी पढता है
वो लिखता है जीवन की कहानी
जी जी कर औरों के जीवन में
वो तुम्हारी कहानी कहता ही जायेगा
तुम सुनो या अनसुना कर दो
दिल की बात वो सुनाता ही जायेगा

सुजीत कुमार (२८ अक्टूबर २००९)

Sunday, November 30, 2008

डर लगता है !!!

मुझे डर लगता है
कल से फैला है सन्नाटा है हर तरफ़
कोई भी मरा नही है
पता नही मुझे क्यूँ लगता है
अब मेरी बारी है

मुझमे तुझमे क्या फर्क है
खुदा तो सबमे है खून का रंग लाल सबका है
वफ़ा से प्यार सबको है
पर ओ मेरे भाई तू क्यूँ हम सबसे नाराज है
क्यूँ हम सबको डरा रहा है

थपकियाँ माँ की लोरी की तरह होती है
बड़े भाई का गुस्सा भी बाद में हम दोनों को रुलाता था
पापा मुझे पीटने के बाद मुझे आइसक्रीम खिलते थे
पर ओ मेरे भाई तू क्यूँ मुझसे अब तक नाराज है

मुझे अब सन्नाटे से डराते हो
कब गोली इस दिवार से निकल के मेरे सीने में घुस जायेगी
मैं इसी का इंतज़ार करता रहता हूँ
दिल को चीर करके रख दूँ आज मैं और कहूँ तुमसे मैं सच में तुम सब से मुहब्बत करता हूँ
पर मेरे भाई तू इस छोटी सी बात को क्यूँ नहीं समझता है

चल आ मेरे पास फ़ेंक ये बन्दूक जिसकइ गोलियां प्यार नहीं पैदा करती
मेरे भाई फ़ेंक ये नफरत जो गरीब को आमिर नही कर सकती
फ़ेंक ये नकाब जो तुमने चढा रखा है अपने दिल पे
पूछ अपनी माँ से अपने भगवान से क्या सच में तू जो कर रहा है वो ये चाहता है।


सुजीत कुमार (मुंबई की बमबारी और दहशत के दो दिन बाद) ३०.११.२००८ रात के १.३० बजे

Friday, October 1, 1999

मेरी बहन

दालान में आती धीमी रौशनी के साथ के साथ
दीवारे से लगी खड़ी
वो मेरी बहन है

घर के कामों से उबी
बाहर दुनिया के रंगत ताकती
खुद को चौखट के भीतर सम्हालती
वो मेरी बहन है |

सीमाओं से बंधी
कल्पनाओं को बांधे
सिर्फ, दुनिया को देखती
इसके कामों को परखती
वो, मेरी बहन है |

सुबह के धुप का आसरा लेती,
chaadar लपेटे
चुपचाप, गुमसुम, शांत खड़ी
वो मेरी बहन है

मैं जाऊं, उसे टोकूँ
कहूँ चलो बाहर
देखो कितना कुछ है यहाँ
कितनी मस्ती है, कितना धुप है
क्यूँ उस धीमी रौशनी में हो
निकलो- उस अँधेरे से,
उस बंधन से
बांधो - नयी कल्पनाओं के मंजर
बंद चारदीवारी के बाहर पांव तो रखो
इन सडे रीति रिवाजों को छोडो
तलाशो खुद को
तलाशो खुद के वजूद को
तलाशो अपनी दुनिया को...
क्योंकि तू मेरी बहन है |

सुजीत कुमार (१९९९, अक्टूबर ) रूड़की